शाम होते ही चरागां करना

क्या ज़रूरी है यहाँ तुम तो हो।।

तीरगी शर्म से दोहरी होगी

इक ज़रा शोख़ तबस्सुम तो हो।।सुरेशसाहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है