यार शीरी जुबान अब भी है।

धूप में सायबान अब भी है।।

उनको अब भी यक़ीन है मुझपे

दिल को इसका गुमान अब भी है।।

एक दिन लौट कर वो आएगा

मुझको ये इत्मीनान अब भी है।।

कौन कहता है अब नही होगा

आख़िरी इम्तेहान अब भी है।।

आज बीमार तो नहीं आते

दरदेदिल की दुकान अब भी है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है