ज़िन्दगी क्यों उबल रही थी बता।

कौन सी बात खल रही थी बता।।


मुझको तन्हाइयों ने क्यों घेरा

जबकि तू साथ चल रही थी बता।।


मुझको साहिल पे छोड़ कर तन्हा

क्यों लहर बन मचल रही थी बता।।


मौत कैसे निकल गयी आगे

तू तो आगे निकल  रही  थी बता।।


ख्वाहिशें कौन सी हुयी पूरी

हसरतें कितनी पल रही थी बता।।


मेरे साये ने साथ क्यों छोड़ा

शाम क्या सच में ढल रही थी बता।।


साहनी मयकदे में क्यों लौटा

चाल किसकी सम्हल रही थी बता ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा