कसम क्या आपकी हम जान खा लें।

रुको बस एक बीड़ा पान खा लें।।


कहो तो आपकी पहचान लें लें।

कहो तो आपका उनवान खा लें।।


बरस सौ बाद यह मौका मिला है

बचा जितना है हिंदुस्तान खा लें।।


सिखा कर धर्म नफ़रत का सभी को

समूचे मुल्क़ का ईमान खा लें।।


हमारी भूख सुरसा से बड़ी है

हमें क्या क्या न चहिए क्या न खा लें।।


सियासी हैं न खायें प्याज लहसुन

भले हम वक़्त पे इंसान खा लें।।


व्यवस्था आजकल सुनती कहाँ है

बताओ और किसके कान खा लें।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

9451545132

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