ज़ुबाँ के ऐब छुप कर भी अयाँ हैं।  

न जाने कितनी कड़वी गोलियां हैं।।

ज़रा सी भूल की कीमत सदी भर

सज़ा से कम हमारी गलतियां हैं।।

हमारे दिन अगर हैं अज़नबी से

तो क्यों रातों में इतनी यारियां हैं।।

हमें इतनी मुहब्बत क्यों है तुमसे

तुम्हारा फ़न अगर मक्कारियाँ हैं।।

हमारे दिल में रहकर भी नहीं हो

यहाँ नजदीकियां ही  दूरियाँ हैं।।

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