समझने और समझाने के दिन हैं।

यही तो अच्छे दिन आने के दिन है।।

सियासत की तुम्हे कुछ भी समझ है

ये दंगे कैश करवाने के दिन हैं।।

कोई क्या खायेगा वे तय करेंगे

हमारे सिर्फ भय खाने के दिन हैं।।

कलाकारों कलमकारों पे बंदिश

कन्हैया अब तेरे आने के दिन हैं।।

कहाँ सम्मान ही बाकी बचा है

जो अब सम्मान लौटाने के दिन हैं।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है