प्यार का ईनाम तुमसे

ज़ख्म मिलना लाज़मी था।

हँसती गाती ज़िन्दगी में

दर्द घुलना लाज़मी था।।


तुम न थे जब ज़िन्दगी

कितनी सहल थी क्या कहें।

ज़ीस्त जैसे खूबसूरत सी

ग़ज़ल थी क्या कहें

ज़िन्दगी थी या कि खुशियों का

बदल थी क्या कहें

आपसी अनुराग से

कुटिया महल थी क्या कहें


तुम मिले तो ज़ीस्त का 

करवट बदलना लाज़मी था।।

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