मुद्दत हुयी ना उसने कोई राब्ता रखा।
ना बातचीत का ही कोई सिलसिला रखा।।
इक बार जो मिला तो बड़ी बेदिली के साथ
शिकवे तमाम गुफ़्तगू में या गिला रखा।।
बातें हुईं तो किस तरह इतने से जानिये
मैंने ग़ज़ल सुनाई तो उसने क़ता रखा।।
आया है मेरे फातिहा पे बन सँवर के वो
जीते जी ना मिला ना कोई वास्ता रखा।।
सारे रकीब उससे रहे आशना मगर
इक साहनी का नाम बड़ा बेवफ़ा रखा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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