वेदने अब मौन रहना सीख लो
हैं कुटिल खूंखार अब संवेदनायें
क्या करोगे कौन सुनता हैं व्यथायें
सब हँसेंगे जोड़कर अथ वा तथायें
लाख तुम निर्दोष या निश्छल रहोगे
लोग गढ़ लेंगे कई कुत्सित कथायें
चुप न हो बस कुछ न कहना सीख लो
अब नहीं सुनती बधिर आत्मीयतायें.......
दर्द बांटेगा कोई यह भूल जाओ
हर व्यथा हर पीर को उर में छिपाओ
बाँटने से पीर बँटती भी नहीं है
व्यर्थ अपने आँसुओं को मत लुटाओ
प्रेम में चुपचाप दहना सीख लो
क्या पता वन वीथिकाएँ फिर बुलायें.......
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