गया था कब उसे सागर बुलाने।
नदी ख़ुद चल के आयी है समाने।।
कहाँ थी उसमें ऐसी बेनयाजी
नहीं जाते थे हम ही दिल लगाने।।
तुम्हें हम मान लेते हैं सही पर
गलत हमको लगे तुम ही बताने।।
हक़ीक़त से फ़क़त हम रूबरू हैं
ज़हां को चाहिये झूठे फ़साने।।
नहीं है जाविदानी इश्क़ में अब
गया वो दौर गुज़रे वो ज़माने।।
वफ़ा का इम्तिहां हम दे तो दें पर
तुम्हें आना पड़ेगा आज़माने।।
अजब है साहनी इस दौर में भी
सुनाता है मोहब्बत के तराने।।
सुरेश साहनी, अदीब, कानपुर
9451545132
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