अब वो अपने सनम नहीं फिर भी। बेवफ़ाई का ग़म नहीं फिर भी।। तेरा कूचा अदम नहीं फिर भी। जान देने को कम नहीं फिर भी।। आशिक़ी में नहीं मिले तगमे ज़ख़्म सीने पे कम नहीं फिर भी।। जब मिलोगे गले लगा लोगे मुझको ऐसा वहम नहीं फिर भी।। कैसे कह दें कि अब सिवा तेरे और होंगे सनम नहीं फिर भी।। यूज़ एंड थ्रो का अब ज़माना है ऐसा कोई भरम नहीं फिर भी।। जाने क्यों साहनी को पढ़ते हैं उसकी ग़ज़लों में दम नहीं फिर भी।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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Showing posts from January, 2025
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वो अपनी सरकार सम्हालें। हम अपना घरबार सम्हालें।। नफ़रत में डूबी है दुनिया हम सब मिलकर प्यार सम्हालें।। तब ज़मीर था खुद्दारी थी अब कैसे किरदार सम्हालें।। लोकतंत्र है राम भरोसे अपना कल अख़बार सम्हालें।। बुद्ध कर्पुरी जेपी गाँधी आख़िर कितनी बार सम्हालें।। चोर सम्हल जायेंगे मितरों कैसे चौकीदार सम्हालें।। अब कितना विश्राम करेंगे प्रभु आकर संसार सम्हालें।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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गया था कब उसे सागर बुलाने। नदी ख़ुद चल के आयी है समाने।। कहाँ थी उसमें ऐसी बेनयाजी नहीं जाते थे हम ही दिल लगाने।। तुम्हें हम मान लेते हैं सही पर गलत हमको लगे तुम ही बताने।। हक़ीक़त से फ़क़त हम रूबरू हैं ज़हां को चाहिये झूठे फ़साने।। नहीं है जाविदानी इश्क़ में अब गया वो दौर गुज़रे वो ज़माने।। वफ़ा का इम्तिहां हम दे तो दें पर तुम्हें आना पड़ेगा आज़माने।। अजब है साहनी इस दौर में भी सुनाता है मोहब्बत के तराने।। सुरेश साहनी, अदीब, कानपुर 9451545132
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वेदने अब मौन रहना सीख लो हैं कुटिल खूंखार अब संवेदनायें क्या करोगे कौन सुनता हैं व्यथायें सब हँसेंगे जोड़कर अथ वा तथायें लाख तुम निर्दोष या निश्छल रहोगे लोग गढ़ लेंगे कई कुत्सित कथायें चुप न हो बस कुछ न कहना सीख लो अब नहीं सुनती बधिर आत्मीयतायें....... दर्द बांटेगा कोई यह भूल जाओ हर व्यथा हर पीर को उर में छिपाओ बाँटने से पीर बँटती भी नहीं है व्यर्थ अपने आँसुओं को मत लुटाओ प्रेम में चुपचाप दहना सीख लो क्या पता वन वीथिकाएँ फिर बुलायें.......
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तुम्हारी ख़्वाहिशों से थक गया हूँ। बड़ी फरमाइशों से थक गया हूँ।। निभाने की कोई सीमा तो होगी कि अब गुंजाइशों से थक गया हूँ।। ये क्या दिन रात का सजना संवरना बहुत आराईशों से थक गया हूँ।। अभी दरकार है कुछ ज़हमतों की बड़ी आसाइशो से थक गया हूँ।। मुझे बेलौस कुछ तन्हाईयाँ दो कि इन फहमाइशों से थक गया हूँ।। सुकूँ के वास्ते दो ग़ज़ बहुत है बड़ी पैमाइशों से थक गया हूँ।। भले तन साफ है पर साहनी जी दिली आलाइशों से थक गया हूँ।। ख़्वाहिश/ इच्छा, फरमाइश/मांग, गुंजाइश/सम्भावना,क्षमता, आराइश/श्रृंगार, दरकार/आवश्यकता ज़हमत/कष्ट, तन्हाई/एकांत आसाइस/सुविधाएँ, आराम, बेलौस/निस्पृह,बेमुरव्वत फहमाइश/ सलाह, समझाना, चेतावनी सुकूँ/शांति, पैमाइश/नाप-जोख, भूसंपत्ति पैमाइश, आलाइश/मैल, प्रदूषण सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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हम तो गज़लों के ढेर कहते हैं। सिर्फ़ ऊला के शेर कहते हैं।। काफिया औ रदीफ़ क्या मालूम शब्द कुछ बेर बेर कहते हैं।। कोई चरबा करे कोई चोरी करके कुछ हेर-फेर कहते हैं।। साठ की उम्र और दिलबाज़ी जब जगे तब सबेर कहते हैं।। आप के फाख्ते उड़ें बेशक़ हम तो तीतर बटेर कहते हैं।। आप ग़ालिब के हैं चचा तो क्या सब हमें भी दिलेर कहते हैं।। साहनी हैं मिजाज़ के नाज़ुक शेर लेकिन कड़ेर कहते हैं।। ऊला/शेर की प्रथम पंक्ति काफिये/समान ध्वनि वाले शब्द रदीफ़/ अन्त्यानुप्रासिक शब्द या शब्द समूह बेर बेर/ बार बार, चरबा/नकल दिलबाज़ी/ दिल्लगी, लम्पटगिरी ग़ालिब/प्रभाव , कड़ेर/ कठोर
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शम्स का पाला बदलना ठीक है। बर्फ़ रिश्तों में पिघलना ठीक है।। क्यों कुहासे की रजाई में छुपे सुब्ह सूरज का निकलना ठीक है।। रंज था जो तुम निगाहों से गिरे हाँ मगर गिर कर सम्हलना ठीक है।। शीत से लड़ने की ज़िद मत ठानिये क्या बुढ़ापे में उछलना ठीक है।। कोहरा है धुँध है सर्दी भी है घर मे रहिये क्या टहलना ठीक है।। जिनको बीपी है शुगर है ध्यान दे खून का कितना उबलना ठीक है।। वक़्त के साँचे में मत ढल साहनी धार के विपरीत चलना ठीक है।। सुरेश साहनी,कानपुर 9451545132
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इसी जगत में लाओगे क्या। फिर इन्सान बनाओगे क्या।। आख़िर इस आने जाने में प्रभु तुम कुछ पा जाओगे क्या।। अबलायें फिर खतरे में हैं अब भी दौड़े आओगे क्या।। दीन हीन है धर्म धरा पर आकर वचन निभाओगे क्या।। दुनियादारी के पचड़ों में फिर से हमें फँसाओगे क्या।। पूछा है नाराज़ न होना फिर गलती दोहराओगे क्या।। सुरेश साहनी , अदीब कानपुर 9451545132
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मुद्दत हुयी ना उसने कोई राब्ता रखा। ना बातचीत का ही कोई सिलसिला रखा।। इक बार जो मिला तो बड़ी बेदिली के साथ शिकवे तमाम गुफ़्तगू में या गिला रखा।। बातें हुईं तो किस तरह इतने से जानिये मैंने ग़ज़ल सुनाई तो उसने क़ता रखा।। आया है मेरे फातिहा पे बन सँवर के वो जीते जी ना मिला ना कोई वास्ता रखा।। सारे रकीब उससे रहे आशना मगर इक साहनी का नाम बड़ा बेवफ़ा रखा।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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हूबहू मुझ सा ही किरदार कोई है मुझमें। या तो मेरा लिया अवतार कोई है मुझमें।। मैं तो जानूँ हूँ गुनहगार कोई है मुझमें। लोग कहते हैं कि अबरार कोई है मुझमें।। मैं तो काफ़िर हूँ मुझे उस पे यकीं छोड़ो भी सब ये समझे हैं कि दीं-दार कोई है मुझमें।। शौक़ इतना है अदीबों से शनासायी का मैं तो नादार हूँ ज़रदार कोई है मुझमें।। मेरे ही दिल मे मुझे मैं नहीं दिखता शायद तीरगी की बड़ी दीवार कोई है मुझमें।। आईना देख के मैं ख़ुद भी सहम उठता हूँ गोया मुझसे बड़ा खूँखार कोई है मुझमें।। छोड़ कर दैरोहरम मैक़दे चल देता है मैं नहीं शेख़ वो मयख़्वार कोई है मुझमें।। हूबहू/एक समान क़िरदार/ चरित्र, व्यक्तित्व, अबरार/पवित्र, नेकदिल काफ़िर/नास्तिक, दीं-दार/धार्मिक, अदीब/साहित्यकार, शनासाई/ परिचय, नादार/निर्धन, ज़रदार/धनवान, तीरगी/अँधेरा, गोया/जैसे कि, खूँखार/भयानक, दैरोहरम/मन्दिर-मस्जिद, मैकदा/शराबघर, मयख्वार/ शराबी सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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बचना बजते गालों से। झूठों और दलालों से।। हँस कर लुटने जाते हो मज़हब के रखवालों से।। रिश्ते अब क्षणभंगुर हैं बेशक़ हों घरवालों से।। उनको दौलत हासिल है हम जैसे कंगालों से।। सिर्फ़ नकलची लिखते हैं सावधान नक्कालों से।। पूँछ लगा कौवे भी अब दिखते मोर मरालों से।। ये सचमुच वह दौर नहीं है बचना ज़रा कुचालों से।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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पहले कोई नया ख़याल मिले। तब तो अपनी कलम को चाल मिले।। हुस्न कितना भी बेमिसाल मिले। इश्क़ वाले ही लाज़वाल मिले।। ज़िन्दगी चार दिन रही यारब मौत को फिर भी इतने साल मिले।। सरनिगू हैं यहाँ पे हर पैकर कोई तो सिरफिरा सवाल मिले।। मान लेंगे कि उसने याद किया जब कि शीशे में एक बाल मिले।। कैसे मानें मेरे ख़याल में है एक दिन तो वो बेख़याल मिले।। साहनी खाक़ ज़िन्दगी है जो हर क़दम पर न एक जाल मिले।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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उफ़ ये ठण्डी धूप के दिन आदमी को क्या सुकूँ दें रात भी दहकी हुई ठिठुरन समेटे जिंदगी जैसे जलाकर राख करना चाहती है जेब इतनी ढेर सारी हैं पुरानी जैकेटों में पर सभी ठंडी गुफायें क्या हम अपने मुल्क में हैं!!!! कौन है यह लोग जो फिर लग्जरी इन गाड़ियों से होटलों में , रेस्तरां में जश्न जैसी हरकतों से रात में भी पागलों से शोर करते फिर रहे हैं।। सुरेशसाहनी