तुम्हारे रुख की रंगत  कम हुई है।

कहो किस से मुहब्बत कम हुई है।।

इधर कुछ कम हुईं हैं शोखियाँ भी

निगाहों की शरारत कम हुई हैं।।

गले मिलने लगे हैं लोग फिर से

दिलों के बीच नफ़रत कम हुई है।।

ज़रूरत हो गयी है आज हावी

तो है तस्लीम ग़ैरत कम हुई है।।

हुआ करती थी कल तक आज लेकिन

कलमकारों की अज़मत कम हुई है।।

जवानी में हुआ करते थे चर्चे

कहें क्या जब कि शोहरत कम हुई है।।

उन्हें हम कर चुके हैं माफ लेकिन

वो कहते हैं मुरौवत कम हुई हैं।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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