जान तुम्हारी आँखों में हैं।

रात हमारी आँखों में हैं।।

हम भी देखे आखिर क्या क्या

ख़्वाब तुम्हारी आँखों में है।।

रस के प्याले होठ तुम्हारे

और ख़ुमारी आँखों में है।।

सब ढूंढ़े हैं महफ़िल महफ़िल

किन्तु कटारी आँखों में है।।

वो खुश है उसके राजा की

शान सवारी आंखों में है।।

सपने हैं कुछ जनता के भी

पर लाचारी आंखों में है।।

अच्छा अब तो सो जाने दो

नींद बिचारी आँखों में है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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