ज़िंदगानी ने रुलाया उम्र भर।

दर्दो-ग़म ने आजमाया उम्र भर।।


ज़िन्दगी भर सर पे साये की तरह

मौत ने फिर भी निभाया उम्र भर।।


हम तो खुद से भी कभी रूठे नहीं

आपने किसको मनाया उम्र भर ।।


सोच पाए बैठ कब तस्कीन से

क्या बिगाड़ा क्या बनाया उम्र भर।।


जो कि बोसे में दिया था आपने

गीत वो ही गुनगुनाया उम्र भर।।


कोशिशें की खूब कह पायें ग़ज़ल

पर हमें लिखना न आया उम्र भर।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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