एक मुहब्बत से हटकर क्या लिखता मैं।

फिर अपने हद से बाहर क्या लिखता मैं।।

तुम थे ,गुलअफसां थे और बहारें थी

इन से ज़्यादा भी सुन्दर क्या लिखता मैं।।

ले देकर इक दिल था वो भी पास नही

बेदिल रहकर दिल दिलवर क्या लिखता मैं।।

ख़्वाबों और ख़्यालों में तुम आते हो

होश में गायब है पैकर क्या लिखता मैं।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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