तुमने गद्दी तो दिल की पा ली है।

क्या कभी सल्तनत सम्हाली है।।

कांप उट्ठी है तीरगी दिल की

एक कंदील ही तो बाली है।।

ढूंढ कर एक मसीह ले आओ

दर्द ने फिर जगह बना ली है।।

हुस्न ही को गुरुर  है जायज़ 

इश्क़ हर हाल में सवाली है।।

अपने बीमार को सताने की

तुमने तरकीब क्या निकाली है।।

वस्ल तूमसे है ईद हो जाना

तुम  जहां हो  वहीं  दियाली है।।

मुबारकबाद

सुरेशसाहनी,कानपुर

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