इधर किश्तों में पैकर बंट गया है।।

मेरे आगे  मेरा क़द  घट गया है।।

कहाँ से क्या लिखें कैसे लिखें हम

अभी मन शायरी से हट गया है।।

हमें तूफान आता दिख रहा है

उन्हें लगता है बादल छंट गया है।।

भरोसा उठ गया है राहबर से

चलो अब ऊंट जिस करवट गया है।।

भला गैरों से क्या उम्मीद हो जब

मेरा साया भी मुझसे कट गया है।।

ख़ुदा को क्या ग़रज़ जो याद रखे

हमें ही नाम उसका रट गया है।।

सुरेश साहनी

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