कौन अपना ज़ुदा हुआ फिर से।

ज़ख्म दिल का हरा हुआ फिर से।।

इक ख़ुदा आज यूँ परेशां है

कोई सजदानुमा  हुआ  फिर से।।

जिस्मे-फ़ानी को छोड़ कर खुश हूँ

मिल गया घर बना हुआ फिर से।।

वो तो तफरीहख़्वाह था यूँ भी

आज जो ग़ैर का हुआ फिर से।।

आसमानों को आज हैरत है

कद हमारा बड़ा हुआ फिर से।।

उनको देखें कि मैकदे जायें

मसअला ये खड़ा हुआ फिर से।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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