गीत

मैं भटका कितनी छाँव तले
अपने हिस्से की धूप लिए।
अपनी ख़ातिर कुछ मांग न लूँ
नियति ने कितने रूप लिए।।

जिसने माँगा उसको बांटा
कुछ को बिन मांगे दे आया।
जब हमने कुछ आशायें की
प्रतिफल खालीपन ही आया।।

मैं याचक भी मैं दाता भी
अनुरागी भी बैरागी भी
 मैं जागूँ भी मैं रोऊँ भी
 हतभागी बड़भागी भी

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