गजल

ठहरी ठहरी रात चल पड़ी।
जहाँ तुम्हारी बात चल पड़ी।।
चंदा शरमाया घूँघट में
तारों की बारात चल पड़ी।।
रजनीगंधा की खुशबू से
बहकी खुशियाँ साथ चल पड़ी।।
आँखों ही आँखों में जैसे
सारी काएनात चल पड़ी।।
फिर बहार ने खोली गांठें
बासन्ती सौगात चल पड़ी।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है