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Showing posts from December, 2024
 कहीं पुरोहित चीखते कहीं शास्त्र हैं मौन। अब ग्यारह दिन के लिए बन्ह के बैठे कौन।।साहनी
 अश्कों ने अन्तस् जलथल कर रक्खा है। भावों ने व्याकुल बेकल कर रक्खा  है।। कुछ कुछ दीवानों जैसा दिखता भी हूँ कुछ अपनों ने भी पागल कर रक्खा  है।। क़त्ल का हर सामां तो तुम ख़ुद रखते हो यार तुम्हें किसने घायल कर रक्खा  है।। यार हटा लो जुल्फ घनेरी चेहरे से चाँद पे तुमने क्यों बादल कर रक्खा  है।। तुम सुरेश बाबुल  घर कैसे जाओगे इतना मटमैला आँचल कर रक्खा  है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 तुम्हारे वास्ते ही लिख रहे हैं। ग़ज़ल या नज़्म जो भी लिख रहे हैं।। तुम्हारे हुस्न में जादू है सच है तुम्हें भी आसमानी लिख रहे हैं।।
 क्यों मुझे देवता समझते हो। सच कहो और क्या समझते हो।। तो तुम्हें जान से भी प्यारा हूँ क्या मुझे बावला समझते हो।।साहनी
 लगा कर क्या करोगे दाँव पहले। जमाओ हौसलों के पाँव पहले।। शहर में भूल जाते हैं सगे भी चलो चलते हैं अपने गाँव पहले।।साहनी
 आज मुँह मोड़कर मेरा दिल तोड़कर तुम कहाँ चल दिये राह में छोड़कर... जबकि वादा था सेहरे में आओगे तुम लाज का मेरी घूँघट उठाओगे तुम तुम तो खुद चलड़िये चूनरी ओढ़कर साथ गन्तव्य तक तुमको आना भी था  जब वचन दे दिये तो निभाना भी था तार तोड़ो न तुम नेह के जोड़कर
 नहीं है यार होता यार तो भी। न होती गलतियां स्वीकार तो भी।। बहकते हर क़दम को रोक लीजै न हो अधिकार हो अधिकार तो भी।। किसी से भी कभी नफ़रत न करिए भले उस से नहीं हो प्यार तो भी।। क़ज़ा ले जायेगी जब चाह लेगी बशर हरगिज़ न हो तैयार तो भी।। नहीं है प्रेम तो वह घर नहीं है बनी हो छत दरो-दीवार तो भी।। सुरेश साहनी कानपुर
 जीना है दिन चार समझ में आया कुछ। फ़ानी है संसार समझ में आया कुछ।। सुख के साथी सब हैं दुख में कितने हैं इस जग का व्यवहार समझ में आया कुछ।। कहीं नहीं है फिर भी सबमें शामिल है मायापति दातार समझ में आया कुछ।। चंदा सूरज और सितारों से आगे उस का पारावार समझ में आया कुछ।। खाली हाथों भेजा खाली बुला लिया उसका कारोबार समझ में आया कुछ।। सारी दुनिया जिसका खेल तमाशा है जादूगर है यार समझ में आया कुछ।।
 जीने के उपादान भी रहने नहीं दोगे। मर जाने के सामान भी रहने नहीं दोगे।। सुख चैन के बागान भी रहने नहीं दोगे। दुख-दर्द को आसान भी रहने नहीं दोगे।। क्या सोच के मीरा को ज़हर देने चले हो क्या तुम कोई रसखान भी रहने नहीं दोगे।। निर्माण पे निर्माण किये जाते हो हर ओर ये बाग वो शमशान भी रहने नहीं  दोगे।। उलझन से मसाइल से मुहब्बत है तुम्हे यूँ ये तय है समाधान भी रहने नहीं दोगे।। हिन्दू जो कहे जाति तो पूछोगे यक़ीनन फिर हक़ से मुसलमान भी रहने नहीं दोगे।। आबादियों से आपको नफरत है पता है बरबादो- बियावान भी रहने नहीं दोगे।। ऐ वहशतो-नफ़रत-ओ-हिकारत के परस्तों क्या तुम हमें इंसान भी रहने नहीं दोगे।। किस ज़िद पे उतर आये हो धरती के खुदाओं क्या अब कहीं भगवान भी रहने नहीं दोगे।। अब साहनी जो भी था ग़ज़लगो था कि कवि था  उसकी कोई पहचान भी  रहने नहीं दोगे।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 इश्क़ बन कर उतर गया दिल में। घर कोई आज कर गया दिल में।। कितनी खामोश है सदा-ए-वफ़ा  इक अजब शोर भर गया दिल मे।।साहनी
 नित्य दक्षिण वाम होना ठीक है क्या। श्वेत मन का श्याम होना ठीक है क्या।। प्रेम है अनमोल सम्पति से न तोलो भावना का दाम  होना ठीक है क्या।। दृष्टि शूलों की मलिन संक्रान्तियों में रूप का अभिराम होना ठीक है क्या।। मैं न त्यागूंगा तुम्हें रखकर अधर में यूँ भी मेरा राम होना ठीक है क्या।। कौन पहचानेगा उनको साहनी अब खास का यूँ आम होना ठीक है क्या।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 दिल मे इक तस्वीर लेकर चल दिये। अनकही तक़रीर लेकर चल दिये।। है ज़मीने-दोगज़ी  बस और  क्या हम कहाँ जागीर लेकर चल दिये।।
 यह तय है जब मैं न रहूँगा मेरे गीत न गाओगे तुम। लेकिन कल जब तुम न रहोगे क्या ख़ुद को सुन पाओगे तुम।। जो वरिष्ठ हैं उनको सुन लो पढ़ लो उनकी लिखी किताबें आने वाली पीढ़ी के भी हाथों में दो सही किताबें वरना अपनों की स्मृतियों से ओझल हो जाओगे तुम।। बेटा बेशक़ तुम्हें सहेजे पोता कुछ कुछ याद करेगा लेकिन कभी किताब तुम्हारी पढ़ न समय बरबाद करेगा रोप रहे हो कीकर प्यारे आम  कहाँ से खाओगे तुम।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 कैसे विकास होगा अपनाये बिन ये फण्डे। मुर्गी से कहना होगा दे रोज चार अण्डे।। मिल्लत के वास्ते है  कुर्बान होना  लाज़िम सो मुर्गियां रहेंगी व्रत सन्डे और मन्डे।। सुरेश साहनी कानपुर 945154513251
 ये दुनिया है फ़क़त हरजाईयों की। किसे है फ़िक्र हम सौदायियों  की।। थका हूँ आज मिलकर मैं ही ख़ुद से ज़रूरत है मुझे तन्हाइयों की।। मैं मरता नाम की ख़ातिर  यक़ीनन कमी होती अगर रुसवाईयों की।। अँधेरों में कटी है ज़िंदगानी नहीं आदत रही परछाइयों की।। गले वो दुश्मनों के लग चुका है ज़रूरत क्या उसे अब भाईयों की।। लचक उट्ठी यूँ शाखेगुल वो मसलन तेरी तस्वीर हो अंगड़ाईयाँ की।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 अब दिल के कारोबार का मौसम नहीं रहा। सचमुच किसी से प्यार का मौसम नहीं रहा।। उतरे हुए हैं आज हर इक सू वफ़ा के रंग क्या इश्क़ के बहार का मौसम नहीं रहा।।
 ज़ुल्म भी इन्तेहा तक ही कर पाओगे। हद से ज़्यादा भला ज़ुल्म क्या ढाओगे।। आईने कब से तारीफ़ करने  लगे देखकर ख़ुद पे ख़ुद तो न इतराओगे।। तुम हो दुश्मन फ़क़त ज़िन्दगी तक मेरी बाद मेरे तो तुम ख़ुद ही मर जाओगे।। ख़ुद उलझते चले जाओगे बेतरह सोचते हो जो औरों को उलझाओगे।। दर्द का हद से बढ़ना दवा ही तो है ऐसी हालत में क्या तुम न झुंझलाओगे।।
 यूँ तो रिश्ता नहीं है ख़ास कोई। है मगर मेरे दिल के पास कोई।। मिल गया वो तो यूँ लगा मुझको जैसे पूरी हुई तलाश कोई।। मेरे हंसने से उज़्र था सबको क्या मैं रोया तो था उदास कोई।। हाले दिल यूँ अयाँ न कर सबसे शख़्स मिलने दे ग़मशनास कोई।। सिर्फ़ लाये हो इश्क़ की दौलत खाक़ देगा तुम्हें गिलास कोई।। क्या करूँ मैं भी बेलिबास आऊँ यां समझता नहीं है प्यास कोई।। साहनी लौट अपनी दुनिया मे तेरी ख़ातिर है महवे-यास कोई।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 मुझको उस पत्थर ने अपना मान लिया।। फिर तो हर संजर ने अपना मान लिया।।
 उस हुस्ने-इम्तियाज से मिलना भला लगा। अपने ही कल के आज से मिलना भला लगा।। यूँ मुस्कुरा के प्यार से खैरमकदम किया मुझको मेरे मिज़ाज से मिलना भला लगा।।
 आर्तनाद को बोलते जन का अंतर्नाद । उनके मन की बात है ऐसा ही संवाद।।
 जब हम अपना चाहने वाला ढूढ़ेंगे। बेशक़ कोई हमसे आला ढूढ़ेंगे।। कुछ शातिरपन हो मेरे हरजाई में एक ज़रा सा दिल का काला ढूढ़ेंगे।। इन आँखों ने सिर्फ़ अंधेरे देखे हैं उन नैनों से रोज उजाला ढूढ़ेंगे।। वो किस्मत की चाबी लेकर आएगा फिर दोनों किस्मत का ताला ढूढ़ेंगे।। अब सुरेश पहले मैख़ाने जायेंगे तब हम काबा और शिवाला ढूढ़ेंगे।। सुरेश साहनी
 ख्वाबों में आसमान दिखाया गया मुझे। फिर फिर मगर ज़मीन पे लाया गया मुझे।।
 सचमुच तेरे ख़याल से कितना जुदा हूँ मैं। जैसे तेरी नज़र में बड़ा पारसा हूँ मैं।। मत ढूंढ तेरी ज़िन्दगी से जा चुका हूँ मैं। कैसे पता मिलेगा मेरा लापता हूँ मैं।।
 धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में आकर युद्घातुर हो एक बराबर पाण्डुपुत्र अरु ममपुत्रों ने  है संजय क्या किया परस्पर  श्लोक 1  पांडव दल का व्यूह देखकर हे राजन दुर्योधन तत्पर द्रोण गुरु के  निकट पहुँच कर बोले राजा वचन सुनाकर हे आचार्य पाण्डुपुत्रों की इस विशाल सेना को देखें व्यूह आपके योग्य शिष्य प्रिय धृष्टद्युम्न ने सजा दिये हैं
 अब यहाँ क्यों अटक गये हैं हम। ख़ुद को गोया पटक गये हैं हम।। अपनी आवारगी भी गायब है हो न हो कुछ भटक गये हैं हम।।साहनी
 ख़ुदा से गर ज़ुदा हूँ मैं  तो उसकी एक गलती से मुझे वो भूल बैठा है उसे मैं याद करता हूँ।।
 जिसे मैंने समझा उज़ैर है। मुझे क्या पता था वो ग़ैर है।। हुआ सर निगूँ  तेरे वास्ते क्या गरज़ हरम है कि दैर है।। मुझे बातिलों में खड़ा मिला जिसे सब कहे थे ज़ुबैर है।। तू जो साथ है वही जीस्त है है तो मर्ग तेरे बग़ैर है।। है तेरी रज़ा में मेरी रज़ा तेरे ख़ैर में मेरी ख़ैर है।। सुरेश साहनी, कानपुर उज़ैर/सहारा, सहायक सर निगू/ सर झुकाना दैर-हरम/मंदिर मस्जिद बातिल/ झूठा बेईमान ज़ुबैर/ योद्धा जीस्त/ ज़िन्दगी मर्ग/मृत्यु रज़ा/सहमति ख़ैर/ बरक़त
 हमारी जीस्त बेशक़ तिश्नगी थी। मगर तक़दीर में खारी नदी थी।। तुम्हारे पास दीवाने बहुत थे हमारे पास इक दीवानगी थी।। हमारी लत वफ़ादारी थी लेकिन यहीं इक बात तुमको सालती थी।। हमारा प्यार दौलत से नहीं था हमारे प्यार की ये तो कमी थी।। जहाँ तक दिन तुम्हारे साथ गुज़रे बस उतनी ही हमारी ज़िंदगी थी।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 ये नहीं है कि प्यार है ही नहीं। दरअसल वो बहार है ही नहीं।। वो तजस्सुस कहाँ से ले आयें जब कोई इंतज़ार है ही नहीं।। फिर मदावे की क्या ज़रूरत है इश्क़ कोई बुख़ार है ही नहीं।। क्यों वफ़ा का यक़ी दिलायें हम जब उसे एतबार है ही नहीं।। मर भी जायें तो कौन पूछेगा अपने सर कुछ उधार है ही नहीं।। आपकी फ़िक्र बेमआनी है साहनी सोगवार है ही नहीं।। सुरेश साहनी, कानपुर
 पलायन ज़िंदगी से क्यों करें हम। अपेक्षाएं किसी से क्यों करें हम।। ये वसुधा है सकल परिवार अपना घृणा तब आदमी से क्यों करें हम।।
 जाने कितनी जान लिए हो। जो क़ातिल मुस्कान लिए हो।। नज़रें तीर कमान लिए हो। खूब निशाने तान लिए हो।। ऊपर से ये भोली सूरत मेरा भी ईमान लिए हो।। हँसते हो मोती झरते हैं मानो कोई खान लिए हो।। आईना तक रीझ गया है क्या करने की ठान लिए हो।। देख के शरमाये हो ख़ुद को किसको अपना मान लिए हो।। आ भी जाओ मेरे दिल मे नाहक़ अलग मकान लिए हो।। 02/12/22 सुरेश साहनी कानपुर 9451545132