तुम्हारी स्मृति में लिखी कविता

अविश्वसनीय सत्य है

अकल्पनीय यथार्थ भी

क्योंकि सृजन के पलों में

तुम नहीं थीं स्मृति में

उन एकाकी पलों  में

साथ थे कुछ शब्द

जो कविता बने.....

यह रुष्ट होने वाली बात नहीं

तुम्हारी स्मृतियों में गुम हो जाता है

मेरे अंदर का कवि

और मैं भी.....

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