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Showing posts from July, 2024
 यह बीमारी मुझको ही है तुमको रोग न ये छू पाया मैं तन का भोगी होता तो मुझ को रोग न ये छू पाता कलियों का रस पीता क्यों कर एक पुष्प पर प्राण लुटाता अर्थ प्रेम है अर्थ प्रेम का इतना मुझको समझ न आया...... जन्म जन्म के बन्धन वाले प्रेम न अब कोई करता है अब का प्रेम बुलबुला जैसा बनता है फूटा करता है आज व्यर्थ का विषय मनन है  किसने कितना साथ निभाया ....... सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 अपना कहीं पड़ाव नहीं है। रुकने का भी चाव नहीं है।। जैसा हूँ वैसा दिखता हूँ ज़्यादा बोल बनाव नहीं है।। क्यों उनसे दुर्भाव रखूँ मैं बेशक़ उधर लगाव नहीं है।। पैरों में छाले हैं लेकिन मन पर कोई घाव नहीं है।। मन क्रम वचन एक है अपना बातों में बिखराव नहीं है।। जीवन है इक बहती नदिया  पोखर का ठहराव नहीं है।। राम सुरेश न मिल पाएंगे अगर भक्ति में भाव नहीं है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 वीणा के तार इतना न कसो कि टूट जाये ढीला भी यों न छोड़ो  कि छिड़े तो सुर न आये तन के बिना बताओ क्या साधना करोगे जब तुम न होंगे ज्ञानी क्या ज्ञान का करोगे फिर ज्ञान भी वही है जो जग के काम आये
 पागल होना चाह रहे हो। या दुनिया को थाह रहे हो।। रिश्ते भी परवाह करेंगे पर क्या उन्हें निबाह रहे हो।। दुनियादारी के मसलों में पड़ तो ख़्वाहमख़्वाह रहे हो।। इश्क़ औ मुश्क कहाँ छिपते हैं बेशक़ पशे-निगाह रहे हो।। इश्क़ जुनूँ है पा ही लोगे तुम भी अगर तबाह रहे हो।। शिर्क है इसमें ग़म का शिकवा किसके लिए कराह रहे हो।। तुम सुरेश जन्नत मुमकिन है कर तो वही गुनाह रहे हो।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 जब ढाई आखर में सारे  जीवन का सार समाया है। फिर लम्बी चौड़ी रचनायें लिखने से क्या हासिल होता।। जब मानव ने पढ़ लिया प्रेम तब रहा न कोई लोभ शेष तब दुनिया भर के धर्म ग्रंथ पढ़ने से क्या हासिल होगा।।
 ज़िंदगी उनकी राह ले आयी धर उम्मीदों की बांह ले आयी।। जिक्र मेरे फकीर को लेकर कौन से खानकाह ले आयी।। लग रहा है कि दिल की दुनिया में फिर से करने गुनाह ले आयी।। या फकीरों के बीच में मुझको  कह के आलम पनाह ले आयी।। या कि मेरे सुकून से जलकर मुझको करने तबाह ले आयी।।
 दिशा नहीं आयाम मिल गये। घर पर चारो धाम मिल गये।। तुम से मिलकर लगा अकिंचन हनुमत को श्रीराम मिल गये।।
 जब तुम ही कह रहे हो वो प्यासा लगा तुम्हें। फिर कैसे बोलते हो वो दरिया लगा तुम्हें।। ऐसा लगा तुम्हें कभी वैसा लगा तुम्हें। क़िरदार से ये साहनी कैसा लगा तुम्हें।। कतरा सही मैं फिर भी समुन्दर की जात हूँ किस तौर किस लिहाज से तिशना लगा तुम्हें।। ग़म थे तुम्हारी याद के मन्ज़र तमाम थे बोलो मैं किस निगाह से तन्हा लगा तुम्हें।। तुम इश्क़ में रहे हो कहो कैसे मान लें औरों का इश्क़ जबकि तमाशा लगा तुम्हें।। सहरा-ए-कर्बला है ये दुनिया मेरे लिए क्या मैं कभी हुसैन का सदका लगा तुम्हें।। सुरेश साहनी , कानपुर 9451545132
 ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का प्यार देना चाहिये। जो भी जिसका है उसे अधिकार देना चाहिये।। दुश्मनी में वक़्त अपना किसलिये ज़ाया करें दिल से अपने दुश्मनी को मार देना चाहिये।।
 कल मैं ही मुझको आईने में अज़नबी लगा। क्या अपने साथ आप को ऐसा कभी लगा।। हर रोज़ दे रही है  बढ़ी उम्र दस्तकें चेहरा नहीं ये वक्त की खाता बही लगा।। लेकर तुम्हारा इश्क़ गया मौत के करीब फिर भी तुम्हारा इश्क़ मुझे ज़िन्दगी लगा।। मेरे लिये तो तुम सदा अनमोल ही रहे क्या मैं कहीं से तुमको कभी कीमती लगा।। तुम देवता कहो मेरी चाहत न थी कभी इतना बहुत है मैं भी तुम्हें आदमी लगा।। अपना तो तुमने मुझको बताया नहीं कभी कैसे कहूँ कि मैं भी तुम्हारा कोई लगा।। कल तुमने किसको देख के चेहरा घुमा लिया तुम जानते थे या कि तुम्हें साहनी लगा।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 नूर वाले फिर से आने से रहे। अब उजाले फिर से आने से रहे।। इतने तमगे रास्तों ने दे दिए पग में छाले फिर से आने से रहे।। भूख थी जब माँ खिलाती थी हमें वो निवाले फिर से आने से रहे।। वालिदों की नज़र और शर्मोहया वैसे ताले फिर से आने से रहे।।
 दूर रहकर तलाश करता है। पास आकर तलाश करता है।। आईना रोज मेरी आंखों में जैसे इक डर तलाश करता है।। आशना है मगर न जाने क्या मुझमें अक्सर तलाश करता है।। इश्क़ सहराब तो नहीं दरिया क्यों समुंदर तलाश करता है।। ज़िन्दगी के सफ़र में जाने क्यों आदमी घर तलाश करता है।। हैफ़ मय को हराम ठहराकर शेख़ कौसर तलाश करता है।। इश्क़ करता था साहनी कल तक आज पैकर तलाश करता है।। सुरेश साहनी कानपुर  9451545132
 आदमी को खल रहा है आदमी। जाने  कैसे पल  रहा है आदमी।। इक उनींदी आँख में सोया हुआ ख़्वाब लेकर चल रहा है आदमी।। जानवर से भी हैं हिंसक हरकतें क्या कभी जंगल  रहा है आदमी।।
 विक्रम तड़प रहा है बेताल रो रहा है। ये मुल्क आज होके बदहाल रो रहा है।। रोना तो मछलियों की किस्मत में है अज़ल से कितनी अजीब बात है घड़ियाल रो रहा है।।
 कब नज़र को सलाम करता है। हुस्न ज़र को सलाम करता है।। इश्क़ जैसा हटा नहीं होता हुस्न मतलब से काम करता है।।
 कोई नया खयाल हो तब तो ग़ज़ल कहें। कुछ ठीक हाल चाल हो तब तो ग़ज़ल कहें।। वो कह रहे हैं कुछ मेरे रुखसार पर कहो उनमें कोई जलाल हो तब तो ग़ज़ल कहें।।
 तेरे दर से जो हम चले आये। ढूंढ़ने  हमको ग़म चले आये।। लोग तक़सीम हो गये कितने हम जो दैरोहरम  चले आये।। आज फिर वो नहीं मिला दिल से हम लिये चश्मनम चले आये।। अब सुराही की क्या ज़रूरत है जब वो ख़ुद होके खम चले आये।। जबकि आया ही था ख़याल उनका और वो बाज़दम चले आये।। क्या कयामत हुई कि मैय्यत में ख़ुद हमारे सनम चले आये।। साहनी फ़र्क़ क्या पड़ा तुमको मयकदे से अदम चले आये।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 लोग पढ़ते हैं या नहीं पढ़ते। हम तो इस फेर में नहीं पड़ते।। हर कहीं इत्तेफाक रखते तो हम किसी आंख में नही गड़ते।। मौत से निभ गयी इसी कारण ज़िन्दगी से कहाँ तलक लड़ते।। किस को तुलसी कबीर होना था हम भी बढ़ते तो हाथ भर बढ़ते।। और मशहूरियत से क्या मिलता ख्वामख्वाह हर निगाह में चढ़ते।। इश्क़ और उस नवाबजादी से उम्र भर ग़म की जेल में सड़ते।। साहनी से ग़ज़ल अजी तौबा फिर ज़ईफ़ी में हुस्न क्या तड़ते।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 बंदूक एक सुंदर गहना है जिसे अच्छे लोग धारण करते हैं कर्तव्य निर्वहन के लिये इसे धारण करके गर्व महसूस करते हैं  मानसिक रुग्ण जन भी धारण करते हैं  स्वयं को असुरक्षित समझने वाले लोग घर मे रखना चाहते हैं सम्पन्न भी और कई बार घर मे रखते हैं साधारण लोग भी ऐसे लोग जो आत्मरक्षा और  आत्मसम्मान की समझ रखते हैं दरअसल बंदूक अच्छी या बुरी वस्तु नही है और ना तो बहुत खतरनाक  सही मायने में देखा जाये तो बंदूक से कहीं ज्यादा खतरनाक है नफ़रत नफरत बंदूक से ज्यादा खतरनाक है
 एक अरसा हुआ मुरझाये मुझे अब तो गुलदान से रुख़सत कर दो।।साहनी
 मौत ने कब कहा ज़िन्दगी से डरो जीस्त ही मौत का डर दिखाती रही।।साहनी
 जो न होना था वो कर दिखाती रही। कैसे कैसे ये मंज़र दिखाती रही।। चाहती थी कि हर सु हमीं हम रहें इसलिए ख़ुद को बेहतर दिखाती रही।। मौत ने कब कहा ज़िन्दगी से डरो जीस्त ही मौत का डर दिखाती रही।।साहनी
 मुतमइन था मैं अपनी भूलों पर। आँच आ ही गयी उसूलों पर।। साथ देने तो खार ही आये मैं भी माईल था जबकि फूलों पर।। जज़्ब कालीन पर हुए ज़ख्मी जीस्त बेहतर थी अपनी शूलों पर।। कल तो तारीख़ भी भुला देगा तब्सिरा व्यर्थ है फ़िज़ूलों पर।। एक दिन शाख टूटनी तय थी जीस्त थी ज़ेरो-बम के झूलों पर।। भेड़िये मेमनों से हँस के मिले बिक गये वे इन्हीं शुमूलों पर।। मछलियां ही भटक गईं होंगी है भरोसा बड़ा बगूलों पर।। आके गिरदाब में पनाह मिली आशियाना था जबकि कूलों पर।। साहनी दार का मुसाफ़िर था हिर्स में आ गया नुज़ूलों पर।। मुतमइन/ सन्तुष्ट मुग्ध, खार/काँटे, माईल/आसक्त जज़्ब/भावनाएँ, जीस्त/जीवन, तारीख़/इतिहास तब्सिरा/चर्चा, फ़िज़ूल/बेकार ,शाख/डाल, ज़ेरो-बम/उतार-चढ़ाव, शुमूल/मिलन, सम्मेलन, गिरदाब/भंवर कूल/किनारा, दार/सूली , हिर्स/लालच,  नुज़ूल/नीचे गिरना, सरकारी जमीन सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 पूस माघ घूम रहे फागुन के गांव।  सूरज ने चूम लिये धरती के पांव।।
 क्यों ना अपनी दुनिया ज़रा सुगढ़ कर दें। आओ सारी धरती को अनपढ़ कर दें।। गिरि को गिरि सम गुरु वन को वन की गरिमा में कृतिम प्रदूषण पर कुछ नियम सुदृढ़ कर दें।।साहनी
 ये सच है तुम ही मेरी राधिका थी। तुम्हीं कर्तव्य पथ में बाधिका थी।। बनाना था धरा को कर्मयोगी मगर तुम प्रेम की आराधिका थी।। जहाँ अगला चरण संघर्ष मय था वहाँ तुम सिर्फ़ कोमल साधिका थी।।साहनी
 संग उसके भी इक सफ़र कर ले। ज़िन्दगी मौज  मे गुज़र कर लें।। मेरे क़ातिल को क्यों अज़ीयत हो क्यों न उसकी गली में घर कर लें।। जबकि मन्ज़िल भी एक है यारब एक ही अपनी रहगुज़र कर लें।। मौत से किसलिये ख़फ़ा हों हम किसलिये ज़िन्दगी ज़हर कर लें।। छोड़ जाने पे ग़म नहीं होगा तेरे ग़म को ही मोतबर कर लें।। क्या कहा आपसे लगा लें दिल और इक वज़्हे-दर्दे-सर कर लें।। साहनी लामकान की ख़ातिर किसलिये ख़ुद को दर-ब-दर कर लें।। सुरेश साहनी , कानपुर 9451545132
 कहने को तूने आदमी को क्या नहीं दिया फिर क्यों बशर को दर पे तेरे मांगना पड़ा।।
 मौत की बानगी नहीं लगते। तुम मगर जीस्त भी नहीं लगते।। अजनबीयत में क्या हसीं थे तुम अब मुझे अजनबी नहीं लगते।। कैसे कह दें कि देवता हो तुम जब मुझे आदमी नहीं लगते।। अपने शासन में सच पे पाबंदी तुम मुझे साहसी नहीं लगते।। तुम मेरे वो तो हो न जाने क्यों मुझको तुम अब वही नहीं लगते।। हैफ़ इतना ज़हर बुझे हो तुम शक्ल से बिदअती नहीं  लगते।। हूबहू शक्ल  है कलाम वही तुम मगर साहनी नहीं लगते।। हैफ़/ हैरत, आश्चर्य बिदअती/फ़सादी, झगड़ालू सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 कब तक याचक बन कर फिरता  कब तक मैं दुत्कारा जाता साहित्यिक तथाकथित  न्यासों-  में  कब स्वीकारा जाता जो लिखा उसे पढ़ लिया स्वयं  जो कहा उसे सुन लिया स्वयं उस पर भी चिंतन मनन स्वयं निष्कर्षों को गुन लिया स्वयं अपनी मंज़िल भी स्वयं चुनी अपना अभीष्ट तय किया स्वयं उन सब को घोषित कर वरिष्ठ  ख़ुद को कनिष्ठ तय किया स्वयं जब लगा बिखरना उचित मुझे किरचे किरचे मैं ख़ुद बिखरा जितना टूटा जुड़ कर उतना तप कर कुछ ज्यादा ही निखरा मैंने प्रशस्तियाँ नहीं गढ़ी भूले भटगायन नहीं किया मैं भले एकला चला किन्तु मैंने दोहरापन  नही जिया।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 सिर्फ़ जीने तो हम नहीं आये। दर्द पीने तो हम नहीं आये।। ज़ख़्म मेरे गुहर है मेरे लिये ज़ख़्म सीने तो हम नहीं आये।। फिर भी दरिया के पार जाना है ले सफीने तो हम नहीं आये।। तेरी रहमत भी चाहिये मौला इक मदीने तो हम नहीं आये।। मेरे आमाल में तो जोड़ इसे यूँ खज़ीने तो हम नहीं आये।। तय था आएंगे तेरे पहलू में फिर क़रीने तो हम नहीं आये।। मेरे अपने भी इसमें शामिल हैं ख़ुद  दफीने तो हम नहीं आये।। कह दो मतलब पे ही बुलाया है साहनी ने तो हम नहीं आये।।
 सच में दीवाना करेगा क्या मुझे। या कि खेलेगा भुला देगा मुझे।। जागता है शम्अ सा वो रात भर इश्क़ में कर दे ना परवाना मुझे।। हरकतें उसकी है दुश्मन की तरह बोलता है ग़ैर से अपना मुझे।। है लगे बीमार ख़ुद तो इश्क़ का ऐसा चारागर न दे मौला मुझे।। उसकी आँखों में कोई जादू तो है साहनी लगता है हरि छलिया मुझे।। कृष्ण-10 सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 अभी बीता है घाम का मौसम। भभकते सुबहो- शाम का मौसम उफ़ रसीली गमक फुहारों में लग रहा है ये आम का मौसम
 कब  हमारी  गली  पधारोगे। दुःख से कब तक हमें उबारोगे।। ब्रज की गउवें भी राह तकती हैं कब उन्हें प्यार से पुकारोगे।। द्वारका में बने रहोगे या कर्ज मैया का भी उतारोगे।। ये समाज हो चुका है कालीदह श्याम कैसे इसे सुधारोगे।। श्याम कब फिर से अवतरित होंगे कब दशा दीन की संवारोगे।। कृष्ण-9 सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 सोचा है यही अपनी तरह तुमको बना दूँ। आ जाओ तुम्हें प्यार के आदाब सिखा दूँ।। ख़ामोश निगाहों से कभी  मुझको पुकारो  या ख़्वाबों-ख़यालों में तुम्हें दिल से सदा दूँ।।साहनी
 गर्मिए-एहसास क्या है इश्क़ में। दूर क्या है पास क्या है इश्क़ में।। चल पड़े जब जानिबे-दार-ओ-सलीब फिर भला वनवास क्या है इश्क़ में।। कस्र-ए-दिल में तो रहकर देखिए आपका रनिवास क्या है इश्क़ में।। आशिक़ी में तख़्त क्या है ताज क्या आम क्या है ख़ास क्या है इश्क़ में।। पहले उसके प्रेम में तो डूबिये जान लेंगे रास क्या है इश्क़ में।। तिश्नगी बुझती नहीं है दीद की मैकदे की प्यास क्या है इश्क़ में।। इक अजब है कैफ़ इसमें साहनी क्या खुशी है यास क्या है इश्क़ में।। गर्मिए-एहसास/भावनाओं की तीव्रता जानिब/ तरफ दार-ओ-सलीब/सूली इत्यादि कस्र-ए-दिल/ दिल का महल तिश्नगी/ प्यास दीद/ दर्शन मयकदे/ शराबघर कैफ़/ आनन्द यास/ दुःख, निराशा सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 जीवन का आधार कृष्ण हैं। मानो तो संसार कृष्ण हैं।। जीवन के इस पार कृष्ण हैं। जीवन के उस पार कृष्ण हैं।। संतजनों की रक्षा केशव दुष्टों का संहार कृष्ण हैं।। सब के मित्र सभी के पालक जन जन के परिवार कृष्ण हैं।। जब अधर्म बढ़ता है जग में तब लेते अवतार कृष्ण हैं।। जीवन की बहती नदिया का गोया पारावार कृष्ण हैं।। तस्मेकं शरणं ब्रज प्राणी सहज मोक्ष के द्वार कृष्ण हैं।। कृष्ण-8 सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 कल शहर की एक प्रतिष्ठित काव्य गोष्ठी में शहर के तमाम नामचीन शोअरा- ए - कराम तशरीफ़ फरमा थे।क्षमा करिएगा वहां तमाम सारे कवि उपस्थित थे।कुल मिलाकर एक बेहतरीन गोष्ठी रही।       ऐसा लिखने की परम्परा है। एक बार हम भी एक कवि सम्मेलन में शिरकत करने गए ।कार्यक्रम का मूल मकसद एक विधायक जी का स्वागत करना था जो कार्यक्रम के बीच में आए थे और दो कवियों को बेमन से सुन सुना कर अपने गिरोह के साथ निकल लिए थे। जैसे तैसे बचे खुचे श्रोताओं के बीच कार्यक्रम संपन्न हुआ। साथ में भंडारा आयोजित था ,इसलिए उपस्थिति गई गुजरी होने से बच गई थी। लेकिन अगले दिन सहभागी कवि मित्रों ने बढ़ा चढ़ा कर कार्यक्रम की सफलता के किस्से पोस्ट किए,और बताया कि बेशक यह कवि सम्मेलन गांव में था परंतु फीलिंग किसी मेट्रो पॉलिटन सिटी के समान ही होती रही।  सबसे ख़ास बात यह रही कि जो कवि नहीं थे उन्होंने अच्छे कवि बनने के और काव्य कला के टिप्स दिए। कुछ वरिष्ठ कवियों ने नवोदितों का प्रोत्साहन किया। वहीं कुछ गरिष्ठ कवियों ने अपने ज़माने के मंचों पर बड़े बड़े तीर मारने के किस्से सुनाए और बताया कि उनकी कविता मंचों पर आग लगाया करती थी। मैने सो
 द्वारका में तो कृष्ण रहता है। पर मेरा सांवरे से रिश्ता है।। जो है गोकुल के नन्द का लाला वो हमारे दिलों में बसता है।। जीव और ब्रम्ह कुछ अलग हैं क्या दरअसल श्याम ही तो राधा है।। ब्रम्ह की बात मत करो उधौ ब्रम्ह का मित्र तो सुदामा है।। द्वारकाधीश आपके होंगे मेरी ख़ातिर तो बस कन्हैया है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132