खूब उम्मीदें पाले थे।
शायद हम मतवाले थे।।

जिन पर ठोकर ठेस लगी
रस्ते देखे- भाले  थे ।।

भाई तक मुंह मोड़ गए
वो तो फिर भी साले थे।।

जीवन डगमग बीत गया
कितने  ऊँचे खाले थे।।

ईसा जैसे सूली पर
हम भी चढ़ने वाले थे।।

कौन गवाही देता जब
सबके मुंह पर ताले थे।।

लड़की कैसे न डरती
सब तो मजहब वाले थे।।

मैं ही अँधा था वरना
चारो ऒर उजाले थे।।

मेरी राहें रोशन हों
माँ ने दीये  बाले थे।।

तुमने गम की नेमत दी
हम तो निपट निठाले थे।।

वहां आदमी एक न था
मस्जिद और शिवाले थे।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है