सब न बेचो दुकानियों के लिये। कुछ तो रख लो निशानियों के लिये।। इतने ज़्यादा भी बाँध मत बाँधो क्या बचेगा रवानियों के लिये।। यूँ भी दुनिया बदलने वाली है तुम न होगे कहानियों के लिये।। रास्ते राजपथ के छोड़ो भी इन उमड़ती जवानियों के लिये।। एक दिन लोग तुम पे थूकेंगे आज की लन्तरानियों के लिये।। सुरेश साहनी
Posts
Showing posts from March, 2025
- Get link
- X
- Other Apps
लाख मुझको नदी समझता था पर मिरी तिश्नगी समझता था।। दिल उसे देवता न कह पाया वो मुझे आदमी समझता था।। दिल पे जो ज़ख़्म दे गया इतने इक वही दर्द भी समझता था।। दरअसल नूर था उसी दर पर मैं जहाँ तीरगी समझता था।। आशना है अज़ल से वो मेरा और मैं अजनबी समझता था।। उफ़ वो गुफ्तारियाँ निगाहों की मैं उसे ख़ामुशी समझता था।। हाँ बहुत बाद में कहा उसने इक उसे साहनी समझता था।। सुरेश साहनी अदीब 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
लोग बेशक़ जहीन थे उनमें। बस वहाँ आदमी न थे उनमें।। जाने कितने महीन थे उनमें। हम ही तशरीह-ए-दीन थे उनमें।। तीरगी सी लगी न जाने क्यों सब सितारा-जबीन थे उनमें।। जो भी मिलता था बस तकल्लुफ़ से लोग थे या मशीन थे उनमें।। सब वहाँ शोअरा थे अच्छा है पर कहाँ हाज़रीन थे उनमें।। महफ़िले-कहकशां कहें क्यों कर दिल के कितने हसीन थे उनमें।। सब थे तुर्रम सभी सिकन्दर थे साहनी ही रहीन थे उनमें।। ज़हीन/समझदार महीन/शातिर,कूट चरित्र तशरीह-ए-दीन/ स्पष्ट,ईमान वाले तीरगी/अंधेरा सितारा-जबीन/रोशन मस्तक तकल्लुफ़/औपचारिकता शोअरा/कविगण हाज़रीन/दर्शक वृन्द कहकशां/निहारिका, आकाशगंगा तुर्रम/बड़बोले सिकन्दर/महत्वाकांक्षी रहीन/बंधुआ, साधारण सुरेश साहनी , कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
जाने कितने ज़ख़्म दिल पर दे गया। जो मुझे ग़म के समुंदर दे गया।। ले गया नींदे उड़ाकर बेवफा पर मुझे ख़्वाबों के लश्कर दे गया।। गुलबदन कहता था मुझको प्यार से हाँ वही कांटों का बिस्तर दे गया।। ले गया सुख चैन जितना ले सका उलझनें लेकिन बराबर दे गया।। सादगी क़ातिल की मेरे देखिये मुझको उनवाने- सितमगर दे गया।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
अक्सर ये उजाले हमें गुमराह करे हैं। ख़ुदग़र्ज़ हवाले हमें गुमराह करे हैं।। भाई न बिरादर न हैं ये काफ़िले वाले ये ख्वामख्वाह साले हमें गुमराह करे हैं।। क़ातिल पे भरोसा हुआ जाता है सरीहन जब चाहने वाले हमें गुमराह करे हैं।। मत ढूंढिये मत खोजिये यूँ चटपटी खबरें ये मिर्च-मसाले हमें गुमराह करे हैं।। शफ्फाक लिबासों से ज़रा दूर रहा कर दिल के यही काले हमें गुमराह करे हैं।। गुमराह/भ्रमित, ख़ुदग़र्ज़/स्वार्थी हवाले/सम्बन्ध, दृष्टान्त ख़्वाहमखाह/जबरदस्ती, इच्छा के बग़ैर सरीहन/जानबूझकर शफ्फाकलिबास/ सफेदपोश, उजले वस्त्र धारी सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
केहू बिखर गइल इहाँ केहू उजर गइल। देखलीं न केहू प्यार में परि के संवर गइल।। मिलला के पहले इश्क में दीवानगी रहल भेंटली त सगरो भूत वफ़ा के उतर गइल।। अईसन न जिन्नगी मिले केहू के रामजी जवानी उहाँ के राह निहारत निकर गइल।। कहलें जफ़र की जीन्नगी में चार दिन मिलल चाहत में दू गइल दू अगोरत गुजर गइल।। उनका के देख लिहलीं करेजा जुड़ा गइल उ हमके ताक दिहलें हमर प्रान तर गइल।। भटकल भीनहिये सांझ ले उ घर भी आ गईल बा बड़ मनई जे गिर के दुबारा सम्हर गईल।। हम आपके इयाद में बाटी इ ढेर बा इहे बहुत बा आँखि से दू लोर ढर गइल।। - Suresh SahaniU
- Get link
- X
- Other Apps
गो क़दम देखभाल कर रखते दिल कहाँ तक सम्हाल का4 रखते आख़िरी सांस की दुहाई दी क्या कलेजा निकाल कर रखते कोई सुनता तो हम सदाओं को आसमां तक उछाल कर रखते ज़िन्दगी दे रही थी जब धोखे मौत को खाक़ टाल कर रखते फ़ितरते-हुस्न जानते तब क्यों इश्क़ का रोग पाल कर रखते नेकियाँ पुल सिरात पर मिलती हम जो दरिया में डाल कर रखते साहनी मयकदे में आता तो दिल के शीशे में ढाल कर रखते साहनी सुरेश कानपुर