ये जान ले लो ये जान है क्या।

जो तुम नहीं तो जहान है क्या।।

ये चांदनी भी है चार दिन की

इसी पे तुमको गुमान है क्या।।

ये ख़ैरख़्वाही ये रंगरोगन

ये जिस्म कोई मकान है क्या।।

हमें भी दिल दो कि हम भी देखें

ये इश्क़ का इम्तेहान है क्या।।

जफ़ा के मारे हैं मयकदे में

ये दरदेदिल की दुकान है क्या।।


सुरेशसाहनी, कानपुर

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