शाखे-गुल झूम उठी है फिर से।

शबनमी प्यास जगी है फिर से।।

फिर कोई शाह हुआ है बेताज

कोई मुमताज़ मिली है फिर से।।

फिर से आया है कोई इश्क़ लिए

कोई दीवार गिरी है फिर से।।

माहरुख कोई अयाँ है कि अदीब

चाँदनी फैल गयी है फिर से।।

ख़्वाब से जाग उठा हूँ शायद

वज़्म में उसकी कमी है फिर से।।

सुरेश साहनी,अदीब

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