नफ़रत को भी इस बात का इमकान है शायद।

इन्सान मुहब्बत से परेशान है शायद।।


गुलज़ार है जिस ढंग से बस्ती तो नहीं है

आबाद यहाँ पर कोई शमशान है शायद।।


डरता हूँ कहीं रश्क न हो जाये ख़ुदा को

घर मेरी तरह उसका भी वीरान है शायद।।


ये सच है कि तू ही मेरी उलझन की वजह है

तू ही मेरे तस्कीन का सामान है शायद।।


इस नाते मुबर्रा है  तलातुम से ज़हां के

घर उसका अज़ल से ही बियावान है शायद।।


नफ़रत/घृणा

इमकान/अंदेशा, सम्भावना ,सामर्थ्य

रश्क/ईर्ष्या

वजह/कारण

तस्कीन/सुकून, शांति,राहत

मुबर्रा/उदासीन, विरक्त, निस्पृह

तलातुम/लहरें, उठापटक, उथल पुथल

अज़ल/सृष्टि के आरम्भ से

बियावान/जंगल, जन शून्य, निर्जन


सुरेश साहनी कानपुर

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