इश्क़ भटका किया वीरानों में।

हुस्न  आबाद है  ऐवानों  में।।


हुस्न महफ़िल में बुझा रहता है

इश्क़ रौशन है बियावानों में।। 


होश आया तो चले मयखाने

हुस्न अब भी है सनमखानों में।।


बोझ यादों का तेरी लाद सके

अब नहीं दम वो मेरे सानो में।।


कल हकीकत से बना कर दूरी

हुस्न शामिल  हुआ अफसानों में।।


सुरेश साहनी कानपुर

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