इश्क़ माना कि मुद्दआ तो था।
हुस्न भी ख़ुद में मसअला तो था।।
ज़ख़्म दिल पर भले लगा तो था।
उस ख़लिश में मगर मज़ा तो था।।
सुन लिया शख़्स बेवफा तो था।
इश्क़ वालों का आसरा तो था।।
हाल सबने मेरा सुना तो था।
कौन रोया कोई हँसा तो था।।
क्या कहा सच ने खुदकुशी कर ली
क्या कहें कल से अनमना तो था।।
जाल फेंका था फिर वही उसने
मेरे जैसा कोई फँसा तो था।।
मान लेते हैं तुम नहीं कातिल
क़त्ल मेरा मगर हुआ तो था।।
उसमें ढेरों बुराईयाँ भी थी
साहनी आदमी भला तो था।।
सुरेश साहनी कानपुर
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