बेवज़ह की रार में मारा गया।
मैं यहाँ बेकार में मारा गया।।
कोई सुनता है ये कैसे मान लें
सर अगर दीवार में मारा गया।।
बस अहिल्या ही सदा शापित हुई
इंद्र कब व्यभिचार में मारा गया।।
देह का क्या बेवज़ह रूठी रही
और मन मनुहार में मारा गया।।
काश नफ़रत सीख जाता साहनी
इब्तिदा-ए- प्यार मे मारा गया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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