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Showing posts from August, 2015

वेदव्यास

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अंततः श्वेतकेतु का धैर्य जबाब दे गया।वे ऋषि उनकी माँ का हाथ पकड़कर संसर्ग के लिए उनकी कुटिया में ले जाने लगे थे।ऋषि उद्दालक मौन थे।श्वेतकेतु ने ऋषि का हाथ झटक दिया।श्वेतकेतु के इस अप्रत्यशित आचरण से उनके पिता क्षुब्ध हो उठे।उन्होंने समझाया ,पुत्र उनके आश्रम में मेरा भी इसी प्रकार सम्मान होता है।उनकी स्त्रियां भी सहजता से भोग हेतु प्रस्तुत रहती हैं।यही आर्य परम्परा है।किन्तु श्वेतकेतु असहज ही रहे।उन्होंने कहा कि मूल निवासी द्रविण निषाद क्यों एक स्त्री के साथ जीवन यापन करते हैं। इस प्रश्न से उनके पिता ने क्रोधित होकर उन्हें आश्रम से निकाल दिया। पिता से दुत्कारे जाने के पश्चात् वे भटकते भटकते पराशर ऋषि के आश्रम में पहुंचे।ऋषि ने जब उन्हें देखा तो उनका यथोचित सत्कार किया और कहा कि मुनिवर आने का प्रयोजन बताएं।श्वेतकेतु ने अपना प्रश्न बताया।पराशर ने कहा वस्तुतः जन्म से सभी शुद्र होते हैं बाद में उनकी वृत्तियों के अनुसार वर्ण विभाजित होता है।एक निषाद का पुत्र मेरे जैसा प्रतिष्ठित ऋषि बन सकता है;और एक ऋषि का लड़का वाल्मीकि जैसा लुटेरा बन जाता है। किन्तु आपके यहाँ आर्यों में सोमरस और

क्या सिंवइयों के साथ ईद करें।

किसके आने की हम उम्मीद करें। जब गया वक़्त भी नहीं आता तू भी गर वक़्त पर नहीं आता क्या सिंवइयों के साथ ईद करें।। हम परिंदों को घर में कैद करें चहचहाहट भी रोक दें उनकी सख्त पहरा करें हवाओं पर पूछ कर चलने की तईद करें। क्या इसी जीस्त की उम्मीद करें।।

हमारे बाद क्या बाकी रहेगा।

मैं किस  गफलत में ऐसा कर रहा हूँ। कातिलो पर भरोसा कर र हा हूँ।। यहाँ फरियाद का मतलब नहीं हैं फ़क़त अपना तमाशा कर रहा हूँ।। हमारे बाद क्या बाकी रहेगा। तेरा होना न होना ही रहेगा।। किसी की जान ले लेना सरल है मगर क्या बिन मरे तू भी रहेगा।। तेरी हर बात मैं मानूँगा वाईज अगर वां मैकदा साकी रहेगा।। बड़े दावे से धमकी दे रहा है मगर ये सोच क्या तू भी रहेगा।।

बला से नाम वाला हो गया हूँ।

बला से नाम वाला हो गया हूँ। मगर कितना अकेला हो गया हूँ।। तकल्लुफ एक हद तक ही भली है इसी से तो अलहिया हो गया हूँ।। तुम्हे ही आज मैं लगता हूँ पागल तुम्हारा ही दीवाना हो गया हूँ।। सुख़न की महफ़िलें फिर से सजेंगी अदब का मैं इदारा हो गया हूँ।।

सुदामा बहुत हैं कन्हैया कहाँ हैं......

न तो अब रार की बातें करें। न तो तकरार की बातें करें।। सियासत से बहुत मन भर चुका है चलो अब प्यार की बातें करें।। चलो अब देश को आगे बढ़ाएं सभी सहकार की बातें करें ।। तू किसी शख्स से दगा मत कर या मुझे दोस्त भी कहा मत कर दोस्ती में नहीं जगह इसकी वेवजह शुक्रिया गिला मत कर दुनियादारी भी इक हकीकत है खुद को ख्वाबों में मुब्तिला मत कर तू किसी से बुरा कहा मतकर तू किसी से बुरा सुना मत कर तू भलाई न कर गुरेज नही पर किसी के लिए बुरा मत कर दोस्ती उम्र भर का सौदा है रस्म इक रोज का अदा मत कर वो ग्वाले वो गोकुल वो गैया कहाँ हैं सुदामा बहुत हैं कन्हैया कहाँ हैं...... वो पनिहारिने और पनघट कहाँ है जो मटकी को फोड़े वो नटखट कहाँ है जो लल्ला पे रीझी थीं मैया कहाँ हैं.....  सरेआम पट खींचते हैं दुशासन चहूँ ओर हैं Iगोपिकाओं के क्रंदन पांचाली के पत का रखैया कहाँ है..... अर्जुन को उपदेश अब कौन देगा गीता का सन्देश अब कौन देगा वो मोहन वो रथ का चलैया कहाँ है.. .. बाल होठों पे मुस्कान आने को तरसे बालिकाएं निकलती हैं डर डर के घर से कलियानाग का वो नथैया कहाँ है.... नंदलाला वो बंशी बजैया कहाँ है।....