Posts

Showing posts from August, 2014

बरसात

बरसा रात झमाझम खूब। बदली थी बेमौसम खूब।। जैसे बिजली चमकी हो तेरी एक तबस्सुम खूब।। कल जाने क्या बात हुयी  तारे रोये शबनम खूब।। उसकी मस्तं निगाही से झूमे था दो आलम खूब।। साजे-दिल इक टूट गया तूने छेड़ा सरगम खूब।।
>> श्री राम उपासना >> श्री राम उपासना विद्या रम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्ग में तथा l संग्रामे संकटे चैव् विघ्नतस्य न जायते l l शुक्लाम्बर धरं देवं शशि वर्ण  चतुर्भुजम   lप्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नों पशान्तये l उक्त मन्त्रों से 'श्री गणेश जी ' का ध्यान करने से उपरान्त निम्नलिखित मन्त्रों से 'श्री राम चन्द्र ' जी का ध्यान करें -------------------------श्री राम ध्यान मन्त्र '' नीलाम्बुज श्यामल कोमलाड़ गम l सीता स्मारोपित वाम भागम l पाणौ महा सायह चारु चापं l मामि रामं रघुवंश नाथम l l १ l l श्री राम चन्द्र रघु नायक राघ वंश lराजाधिराज रघु नन्दन राम चन्द्र lदासाहमद्य भवत शरणागतो स्मि l l  २ l lध्याये दाजानु बाहु ध्रुतशर धनुषं बद्ध पद मासनस्थं lपीतं वासो वसनां नव कमल दल स्पर्धिनेत्र. प्रसन्नम lवामाड़ करूढ सीता मुख कमल मिल्लोचनं नीर दाभं lननालं कार दीप्तं दधतमु रुजटा मण्डल.  राम चन्द्रम l l ३ l lलोकाभिरामं रा रडग धीरं राजीव नेत्रं रघु वंश नथम lकारुण्य रूपं करुणाकरंतं श्री राम चन्द्र शरणं प्रपधे l l ४ l lरामाय राम भद्राय राम चन्द्राय वेधसे lरघु न
भजामि - भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्। स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्। अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्। प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे। पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्। व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।

श्रीराम स्तुति

भजामि - भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्।स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्।अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्।व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।भजामि - भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्।स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्।अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्।व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।भजामि - भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्।स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्।अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्।व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।नमामि भक्त-वत्सलं, कृपालु-शील-कोमलम्। भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्व-धामदम् निकाम-श्याम-सुन्दरं, भवाम्बु-नाथ मन्दरम्। प्रफुल्ल-कंज-लोचनं, मदादि-दोष-मोचनम्। प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं, प्रभो·प्रमेय-वैभवम्। निषंग-चाप-सायकं, धरं त्रिलोक-नायकम।। दिनेश-वंश-मण्डनम्, महेश

श्री गणेश स्तुति

-:श्रीगणेश स्तुति:-चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेम् पाशांकुशौ मोदकपात्र दन्तौ।करैर्दधानं सरसीरूहस्थं,गणाधिनाथं शशिचूडमीडे॥गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारूभक्षणम्।उमासुतं शोकविनाशकारकं,नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्॥अलिमण्डल मण्डित् गण्ड थलं तिलकीकृत कोमलचन्द्रकलम्।कर घात विदारित वैरिबलं,प्रणमामि गणाधिपतिं जटिलम्॥खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम्।प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्ध मधुपव्यालोल गण्डस्थलम्।दन्ताघात विदारितारि रूधिरैःसिंदूरशोभाकरं,वन्दे शैलसुता सुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥नमो नमःसुरवर पूजितांघ्रये,नमो नमःनिरूपम मंगलात्मने।नमो नमःविपुल पदैक सिद्धयै,नमो नमः करिकलभाननाय ते॥शुक्लाम्बरं धरं देवं,शशिवर्ण चतुर्भुजम्,प्रसन्न वदनं ध्यायेत,सर्वविघ्नोपशान्तये॥गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः,मातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभः।निर्विघ्न कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।सर्व विघ्न विनाशाय सर्व कल्याण हेतवे,पार्वती प्रियपुत्राय गणेशाय नमो नमः॥प्रातःस्मरामि गणनाथमनाथ बन्धु,सिंदूरपूर्ण परिशोभित गण्ड युग्मम्,उद्दण्डविघ्नपरिखण्डन चण्ड दण्डमाखण्डलादि सुरन